मैं अक्सर लोगों से सुनता रहता हूँ कि मैंने फलां मंदिर में फलां मन्नत मांगी और वो पूरी हो गयी, तो कोई बताता है उसकी बीमारी फलां गुरूजी या देवता के आशीर्वाद से ठीक हो गयी वरना डाक्टरों ने तो मुझे बर्बाद ही कर दिया होता , तो कोई देरी से प्राप्त संतान को किसी गुरु विशेष का आशीर्वाद मानता है |

दरअसल हर बीमार या अपने दुखों से दुखी व्यक्ति जगह-जगह भटकता है वह कई डाक्टरों से अपना इलाज भी करवाता है और उसी दरमियान अनेक साधूओं, मंदिरों, दरगाहों आदि पर भी किसी चमत्कार की आशा में भटकता है, लेकिन इसी क्रम में जब किसी डाक्टर की दवाई से उसे फायदा हो जाता है तो वह सारा श्रेय उस साधू ,गुरु या देवता को दे देता है जिसके पास वह उस समय भटक रहा होता है। 

ऐसा ही एक उदहारण आपके सामने प्रस्तुत है –

मेरे एक मित्र के चेहरे पर कई सारे मस्से थे जो अक्सर दाड़ी बनाते समय कट जाया करते थे और उनमे से हल्का खून निकल आता था मैंने उनके जैसे मस्सों के बारे में होम्योपेथी औषधियों की एक पुस्तक में पढ़ा था कि इस तरह के मस्से होम्योपेथी की दवाई से एकदम ठीक हो जाते है। 

इस दवा का असर मैंने एक ऐसे मित्र पर भी देखा था जिसके जबड़े पर मस्सों की एक काली परत जमी हुई थी जो दूर से ही दिखती थी उस मित्र को भी होम्योपेथ डाक्टर में कई महीनों दवाई खिलाई थी और नतीजा ये रहा कि आज उन्हें देखकर कोई कह भी नहीं सकता कि कभी उनके चेहरे पर मस्से हुआ करते थे। 

खैर उसी उदहारण को देखते हुए मैंने अपने मित्र को दवाई देना शुरू किया जिसका वो लगभग तीन महीने तक सेवन करते रहे फिर छोड़ दिया। दवाई के सेवन को छोड़ने के बाद संयोग से उसी वक्त हमारे मित्र का अपने गांव जाना हुआ जहाँ उन्हें किसी ने बताया कि उनके गांव स्थित एक देवरे (किसी लोक देवता का छोटा मंदिर) पर झाड़ू चढाने पर मस्से ठीक हो जाते है सो मित्र ने भी वहां एक की जगह दो झाड़ू चढ़ा दी। 

कुछ दिन बाद जब तीन महीने खायी दवा के असर से मस्से ठीक हो गए तो वे मुझे एक दिन बताने लगे कि देखो आपने जो दवा तीन महीने खिलाई उससे कुछ नहीं हुआ और गांव के उस देवरे पर एक झाड़ू चढाते ही मस्से ठीक हो गए। आखिर मेरे मित्र ने तीन महीने खायी दवा के असर से ठीक हुए मस्सों को ठीक करने का सारा श्रेय उस लोक देवता को दे दिया | और उस देवता के प्रति उनके विश्वास में प्रगाढ़ता भी आ गयी।